The Definitive Guide to #islamic #sabaq #deen #ka

आज जिस पश्चिमी सभ्यता को महिलाओं का उद्धारक समझा जाता है। जबकि अगर गहराई के साथ सोंचा जाए तो उसने महिलाओं के अपमान में कोई कसर नहीं छोड़ी,और स्वतंत्रता के नाम पर उसको इस बात पर मजबूर कर दिया कि वह माँ होने की भी ज़िम्मेदारी पूरी करे और बाप की जिम्मेदारी का भी कुछ हिस्सा अपने उपर ले ले। उसे बच्चे को भी जन्म देना है,अपने बच्चों को दूध भी पिलाना है और उसके पालन-पोषण की भी जिम्मेदारी उठाना है। घरेलू कामों से भी निपटना है और साथ ही साथ नौकरी भी करनी है। और आमदनी बढ़ाने में भी हाथ बँटाना है। और फिर उसे इस प्रकार अपमानित किया गया कि माचिस की डिबिया से लेकर जेवरात, कपड़ों और फिल्मों के प्रचार तक हर जगह उसकी सुंदरता का प्रदर्शन किया जाता है और उसके मान सम्मान को निर्वस्त्र किया जाता है। क्या कोई सभ्य व्यक्ति अपनी माँ बहन या बेटी को निर्वस्त्र अवस्था में देखना स्वीकार करेगा?

lihaza muslim sirf naam se nahi hota balke use Islam ke nuqta e nazar aur amal ka hamil hona bhi zaruri hai.

तहरीके इस्लाहे मुआशेरा अॉल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

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Shariyat ki yeh wo badi khubi hai jis ki Bina par har zamana aur har muashereh mein is for every amal der aamad aasaan raha hai aur is ki talkeen ki jati rahi hai aur chuki yeh shariyat insanon ki banayi hui nahi hai balke is arz-w-sama aur iski makhlukat ke khaliq Allah rab-ul-alamin ki taraf se mukarrar karda hai, aur wo Insaan ki takat amal aur zarurat ko sab se zyada janta hai, isliye yeh kanoon-e-shariyat insaan ki fitrat ke bilkul mutabik hai is hi liye deen-e-islam ko “deen-e-fitrat” se bhi taabir kiya gaya hai aur chuke yeh shariyat is hi zaat-e-aala-w-ajal ki mukarrar karda hai isliye is ki makhluk mein se kisi ko bhi isme se kisi tarmeem-w-tagaiyur ka Haq nahi hai.

इस्लाम में दीनी निर्देश केवल इबादात (पूजा पाठ) के विशेष रूप में ही सीमित नहीं रखे गए हैं। बल्कि वह मानव जीवन के अन्य पहलुओं के लिए भी दिशा निर्देश रखते हैं। और इस्लाम में शरीयत उन्ही निर्देशों का नाम है। इस्लाम में इबादत का मतलब है जीवन के समस्त पहलुओं में अपने परवरदिगार अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की आज्ञाकारी। और यह आज्ञाकारी जीवन के उन पहलुओं में भी करनी है जो बज़ाहिर देखने में दुनिया के लाभों से संबंध रखती है। उदाहरणार्थ वैवाहिक जीवन, सामाजिक व्यवहार एवं आर्थिक एवं सामाजिक आवश्यकताएं। और इसी के साथ साथ रस्मो रिवाज। एक मुसलमान को उन सब पहलुओं में यह देखना होता है कि उनमें से कोई कार्य अल्लाह ताआला के आज्ञा के विरुद्ध ना हो।

औकाफ की सम्पत्तियों के रूप में मिल्लते इस्लामिया का कीमती सामुदायिक सम्पत्ति पूरे देश में फैली हुई है। यदि इन सम्पत्तियों से भरपूर और उचित काम लिया जाय, तो न सिर्फ मुसलमानों की शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति बदल जायेगी बल्कि पूरे देश की तस्वीर पर इसका गहरा असर होगा। इसलिए भारतीय मुसलमानों के धार्मिक और सामाजिक प्रतिनिधियों ने ऐसे नये वक्फ एक्ट का बराबर मांग किया है, जो मजबूत, असरदार हो, वक्फ सम्पत्ति से गलत और नाजायज कब्जों को हटाने की शक्ति रखने वाला हो और वक्फ के विकास का जरिया बन सके। वक्फ की सम्पत्तियों से मिल्लते इस्लामिया की सलाह व फलाह का रास्ता बन सके, और बहुत से रुके पड़े सामुदायिक कार्यों को पूर्ण रूप here दिया जा सके।

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शरीयत के संबंध में हमें अल्लाह को जवाब देना होगा

Is sazish ko samjhen, dushman ki aiyyari se mutassir na ho, firasat e emani se kaam len aur ukhuwat-e-islami ko har rishta-w-ilakhe se zyada aziz rakhe agar humne khuda se apna taluk istewa raka aur tadbur hiqmat-w-wehdat-w-ishtemaiyat ka daman nah choda toh koi nahi jo humari rah rok sake warna ye aisa nuksaan hoga ki kabi aur kisi tarha shayad iski talafi mumkin nah ho.

Shehnaz Kausar is often a renowned woman story author, novelist, and biographer. she's an editor of a popular regular digest and penned some outstanding stories.

अल्लाह तआला ने एक इंसान की फितरत में मिजाज व मजाक की विभिन्नता रखी है। इसी प्रकार यह भी वास्तविकता है कि इंसान की इच्छाएँ असीमित हैं और इस दुनिया में संसाधन सीमित रखे गए हैं, इसलिए मफादात में टकराव पैदा होता है और आपसी झगड़े की नौबत आती है। कानून इसीलिए बनाए जाते हैं कि ऐसे झगड़े में न्याय कायम किया जाय और किसी के साथ ज्यादती न हो और उन कानूनों का विषलेशन, विषयों पर उनकी जांच करना और उनको लागू करने की कोशिश करना इस संस्था की जिम्मेदारी होती है जिसको न्यायपालिका कहा जाता है और जिसको फिका की भाषा में नेजामे कजा कहते हैं। फोकहा ने इस बात को स्पष्ट किया है कि अगर कहीं मुसलमान अल्पसंख्यक में हों और सत्ता का बागडोर उनके हाथों में न हो तब भी मुसलमानों पर यह बात वाजिब (आवश्यक) है कि वह सामूहिक मशविरा से नेजामे इमारत कायम करें। ऐसी सूरत में मुसलमान आपसी सहमति से जिसके काजी होने पर सहमत हो जायें वह मुसलमानों के आपसी झगड़ों का कानूने शरीयत के आधार पर निर्णय करे।

बन्दगी का उद्देश्य एवं लक्ष्य शरीयत पर पूर्ण रूप से कार्यरत होना है

(अध्यक्ष आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड)

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